सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है / galib

Friday, April 11, 2008

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता कि फिर ख़न्जर कफ़-ए-क़ातिल में है

देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उसने कहा
मैंने यह जाना कि गोया यह भी मेरे दिल में है

गरचे है किस किस बुराई से वले बा ईं हमा
ज़िक्र मेरा मुझ से बेहतर है कि उस महफ़िल में है

बस हुजूम-ए-ना उमीदी ख़ाक में मिल जायगी
यह जो इक लज़्ज़त हमारी सइ-ए-बेहासिल में है

रंज-ए-रह क्यों खेंचिये वामांदगी को इश्क़ है
उठ नहीं सकता हमारा जो क़दम मंज़िल में है

जल्वा ज़ार-ए-आतश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ितना-ए-शोर-ए-क़यामत किस की आब-ओ-गिल में है

है दिल-ए-शोरीदा-ए-ग़ालिब तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमन्ना पर कि किस मुश्किल में है

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