आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / गा़लिब

Tuesday, April 08, 2008

आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

दामे-हर-मौज में हैं हल्क़-ए-सदकामे-निहंग देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक

हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक

पर्तौ-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक

ग़मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
...
......ग़ालिब...

0 comments:

Related Posts with Thumbnails

Recent Comments